भीलवाड़ा, देश की आजादी के 78 साल बाद भी विमुक्त, घुमंतू एवं अर्ध-घुमंतू जातियों (डीएनटी) को उनके अधिकार नहीं मिल पाने के विरोध में अब निर्णायक आंदोलन का शंखनाद हो चुका है। राष्ट्रीय पशुपालक संघ एवं डीएनटी संघर्ष समिति ने आजादी का महासंग्राम नामक एक बड़े आंदोलन की घोषणा की है, जिसकी जानकारी देते हुए समिति के संरक्षक और समाज के प्रमुख चेहरे रतनलाल कालबेलिया और राजीय पशुपालक संघ के अध्यक्ष लालसिंह रायका ने बताया कि 7 नवंबर 2025 को राजस्थान के पाली जिले में दिल्ली-मुंबई हाइवे स्थित वालराई गांव में लाखों लोग जुटेंगे। यह आंदोलन कोई राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति है, जिसका उद्देश्य सरकार तक अपनी मांगें पहुंचाना है। रोडवेज बस स्टैंड के सामने एक निजी होटल में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान, पदाधिकारियों ने जोर देकर कहा कि डीएनटी समाज आज भी पहचान, स्थायी निवास और सरकारी योजनाओं से वंचित है। देश आजाद हो गया लेकिन हम टीएनटी समाज को आज भी पहचान नहीं मिली है। हम आज भी अपनी रोटी, कपड़े और मकान के लिए दर-दर भटक रहे हैं,' उन्होंने पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा।
आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए अधिकार यात्रा का आयोजन किया जा रहा है. जो 16 सितंबर से 23 सितंबर तक विभिन्न जिलों से गुजरेगी। यात्रा की शुरुआत 16 सितंबर को भीलवाड़ा के हरणी महादेव से होगी। यह यात्रा भीलवाड़ा के अलावा ब्यावर, सोजत-पाली, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा-प्रतापगढ़ और राजसमंद जिलों को कवर करेगी। इसयात्रा का मुख्य-जुख्य उद्देश्य घर-घर जाकर लोगों को 7 नवंबर के आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करना है। कालबेलिया ने सभी डीएनटी समुदायों से अपील की है कि वे इस ऐतिहासिक आंदोलन का हित्सा बनें और अपनी पहचान व स मान के लिए एकजुट हों।
ये हैं आंदोलन की प्रमुख मांगें (चार्टर ऑफ डिमांड्स)
प्रेस वार्ता में, समिति ने 11 सूत्रीय मांगों का एक चार्टर ऑफ डिमांड्स भी जारी किया। इसमें सबसे प्रमुख मांग यह है।
दंत सूची में शामिल जातियों के उपनामों को सूचीबद्ध करें कुछ जाती जो डीएनटी में शामिल है और वह इस डेंट की सूची से बच गई है उनको भी डीएनटी सूची में शामिल किया जाए
शिक्षा का अधिकारः डीएनटी बच्चों को प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक मुक्त शिक्षा मिले और 10 आरक्षण सुनिश्चित किया जाए।
आरक्षणः सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 आरक्षण लागू किया जाए।
रोजगार और स्थायी निवासः हुनरमंद कारीगरों को रोजगार दिया जाए और सभी डीएनटी परिवारों को स्थायी निवास के लिए भूखंड आवंटित किए जाएं।
जनगणनाः जातिगत जनगणना में इन समुदायों को विशेष पहचान दी जाए।
अत्याचार निवारणः घुमंतू जातियों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए कानून बने।
इस आंदोलन में रतनलाल कालबेलिया के साथ लालाजी राइका भी प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। यह आंदोलन डीएनटी समाज के दशकों के संघर्ष और पीड़ा का प्रतीक है, और अब वे अपनी असली आजादी के लिए एक साथ खड़े हैं। 7 नवंबर का दिन इन समुदायों के इतिहास में एक नया अध्याय लिख सकता है।